नहीं रहे उपन्यासकार वेद प्रकाश शर्मा

Manthan Media desk : ‘दहेज में रिवाल्वर’, ‘वर्दी वाला गुंडा’ जैसे फेमस उपन्यास के रचयिता वेद प्रकाश शर्मा नहीं रहे। मैंने इन्हें लेखनी के क्षेत्र में अपना अप्रत्यक्ष गुरु व प्रेरणास्रोत माना है, क्योंकि इनके उपन्यासों को पढ़कर ही मैंने लेखक और पत्रकार बनने की ठानी थी और मैं आज 18 वर्षों से पत्रकारिता कर भी रहा हूं। इन्होंने ‘तुलसी कहानियां’ पत्रिका का भी प्रकाशन किया था, जिसे मैं खूब पढ़ा करता था। इनका इंटरव्यू करने की बहुत इच्छा थी। पर अफसोस….।

अपने गुरु को विनम्र श्रद्धांजलि।    सुनील मंथन शर्मा

 

नहीं वेद भाई, आपने ठीक नहीं किया : ओमकार चौधरी

नहीं वेद भाई, आप इस तरह नहीं जा सकते। अभी तो हमें साथ-साथ बहुत से लम्हे बिताने थे। उन लम्हों को फिर से जीना था, जो वक्त की इस भागदौड़ में बहुत साल पीछे छूट गए थे मेरठ की उन तंग गलियों में, जिनमें आप वो नीले रंग का स्कूटर चलाते थे और मैं पीछे बैठकर आपकी ड्राइविंग का लुत्फ उठाता था। मैं तो सोचता था कि रिटायरमैंट के बाद फिर घंटों साथ बैठने, गप्पे मारने, बुढाना गेट की कचौरियां और जलेबी खाने का फिर शौक पूरा करेंगे। बच्चों की जिम्मेदारी से आप मुक्त हो गए। मुझे अभी होना था। इसके बाद का समय तो हमारा ही था। खूब मस्ती करते। भारत भ्रमण पर निकलते। कभी बच्चों के पास कुछ दिन मुंबई ठहरते। कभी बेटियों के पास अचानक जा धमकते और उन्हें सरप्राइज देते।
परन्तु आप तो हाथ छुड़ाकर चल दिए। और गए भी ऐसी जगह, जहां से कोई लौटकर नहीं आता। नहीं वेद भाई, आपने ठीक नहीं किया। आपके वो ठहाके, होठों की निश्चल मुस्कान। वो खत्म नहीं होने वाले रोचक किस्से। वो राजनीतिक बहस में उलझ पड़ना। क्या-क्या याद करूं। आपके साथ बिताए इतने यादगार पल हैं कि सबको याद करना शुरू करूं तो पूरी पुस्तक ही हो जाएगी। आप जैसे मित्र नसीब वालों को ही मिलते हैं। आप जैसे पिता हर संतान चाहती है। आप जैसा पति कितनों को मिलता है। आप जैसा भाई पाकर कोई भी धन्य हो जाए।
आप इतने बड़े और कामयाब लेखक रहे कि आपके आस-पास भी कोई नहीं था। पाकेट बुक्स में सिर्फ सुरेन्द्र मोहन पाठक ही आपके बाद पसंद किए जाने वाले उपन्यासकार थे। आपके उपन्यासों ने जितनी धूम मचाई, वैसी किसी दूसरे लेखक ने नहीं मचाई। वर्दी वाला गुंडा, तीन तिलंगे, कैदी नम्बर सौ जैसे उपन्यासों ने तो सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। फिल्म जगत में भी आपने योगदान दिया और सबसे बड़ा खिलाड़ी, इंटरनेशनल खिलाड़ी, बहू की आवाज, अनाम और 2001 जैसी फिल्में दी। कई धारावाहिक लिखे। एकता कपूर कैंप के लिए काम किया। कॉमिक्स लिखे। कहानियां लिखीं। समाचार-पत्रों के लिए व्यंग्य लिखे। बस, आत्मकथा लिखने की अभिलाषा पूरी नहीं कर सके।

वेद भाई, जिस समय साल भर पहले पता चला कि आप कैंसर से पीडित हैं, मैं बहुत रोया था। कुछ ही समय पहले मैंने अपने बड़े भाई ओमपाल को खोया था। उन्हें भी आपकी तरह लंग कैंसर था। उन्हें भी तीसरे स्टेज में पता चला था। उन्हें हम नहीं बचा सके। आपका उपचार भी मुंबई के जाने-माने कैंसर रोग विशेषज्ञ ने किया परन्तु हमें पता था कि क्या होने वाला था। मैं ही नहीं, पूरा परिवार आपके सामने ऐसा व्यवहार करते रहे, जैसे हम चिंतित नहीं हैं। सामान्य हैं ताकि आपका मनोबल बना रहे। आप कैंसर से शेर की तरह लड़े। यही कारण है कि एक साल तक हमारे बीच रहे। मैंने करिश्मा, गरिमा, खुशबू, शगुन, कुसुम और भाभी जी को बिलखते देखा है। हम में से कोई भी भीतर से खुद को संभाल नहीं पा रहा था। यह अलग बात है कि आपके सामने सब संयत और सामान्य बने रहने की चेष्टा करते रहे।
मात्र 61 वर्ष की आयु में आप चले गए। परिवार को जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति कभी संभव नहीं है परन्तु आपके करोड़ों पाठक हैं, जो अब भी आपकी नई पुस्तक की प्रतीक्षा जरूर कर रहे होंगे। जासूसी उपन्यासों की दुनिया में मेरठ का नाम आपने जिन बुलंदियों पर पहुंचाया, वो एक मिसाल बन गया है। आपसे पहले ओमप्रकाश शर्मा को लोग जानते थे, जिन्होंने अनेक उपन्यास लिखे परन्तु जब आप मैदान में आए, तब मेरठ वेदप्रकाश शर्मा के नाम से जाना गया।
मेरा और आपका पैंतीस साल पुराना साथ छूट गया दोस्त। लेकिन आप हमेशा मेरे साथ रहेंगे। एक प्रेरक के रूप में। आप जहां भी रहेंगे, जिस भी लोक में होंगे, अपने आस-पास के माहौल को वैसा ही खुशनुमा बना देंगे, जैसा यहां बना देते थे। वेद भाई नम आंखों से आपको शत शत नमन।                      

ओमकार चौधरी 

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