अनारकलियों का सुमिरन एक—सा नहीं होता
बंदे भज ले हरी का नाम
तेरा सुफ्फल होगा काम
भज ले राम—राम
भज ले राम—राम—राम
हर करम अपना करेंगे, ऐ बतन तेरे लिए
दिल दिया है, जान भी देंगे, ऐ सनम तेरे लिए
सबको दिल में समाना नहीं चाहिए
खुद को तोफा बनाना नहीं चाहिए…
तोहरा के देखे बिना माने नाही मनवा
सजनवा हो तनी आव ना भवनवा
बलमवा हो तनी कर ल नेवनवा…
बिहार में चर्चित रहीं अनारकलियों का सुमिरन गीत है यह सब. कुछ गीत स्मृतियों में है. कई अनारकलियों से लंबी बात—मुलाकात के किस्से—कहानियां स्मृति में जीवंतता के साथ है.सभी अनारकलियों का सुमिरन एक—सा नहीं होता. बिहार के एक परिवार में करीब नौ अनारकलियां है. सब मशहूर. सबकी आवाज अलग, अंदाज भी बिल्कुल अलग. अनारकलियों का गीत सुनने के लिए स्कूली दिनों में न जाने कितनी बार हाथ—गोड़ बांधकर दिन भर कमरे में बंद कर दिये जाने की सजा भुगता हूं. न जाने कितनी बार छाती पर पीढ़ा रखकर उस पर जोर आजमाइश की गयी है लेकिन इन सारी सजाओं के बाद जस—जस बड़ा होता गया,अनारकलियों के प्रति अनुराग बढ़ता ही गया. बनारस गया पढ़ने लिखने तो वहां हम आसपास के इलाके में चले जाते थे अनारकलियों को सुनने. वहीं सुने थे एक अनारकली से जानदार गाना, जिसके बोल याद हैं
देख के अपने मन की ए हालत, अब तन भी मचलने लगा है
लेकिन बनती नहीं लड़कियों से, तो अब बुढ़ियों के पीछे पड़ा है
बनारस में घूम—घूम के अनारकलियों के गीत सुने. सारनाथ के इलाके में गांवों में जाकर. मुगलसराय के इलाके में गांवों में जाकर. पत्रकारिता में जब आना हुआ तो अपने मूल गांव की याद आयी. अपना मूल गांव सासाराम से सटा हुआ है.वहां रहना कम हो सका है. बचपन—किशोरावस्था—जवानी, सब औरंगाबाद में मामागांव के माटी—पानी से ही एकाकार हुआ. लेकिन बचपन में दो साल अपने गांव में रहकर पढ़ाई करने के दौरान ही अपने गावं के पास के अनारकलियों की बस्ती को जानता था. मेरे गांव से तीरछे रास्ते एक किलोमीटर की दूरी पर अनारकलियों की ही बसाहट है. नाम बेदा है, अनारकलियों ने उसका नाम बनारसीनगर रख लिया है खुद से. रातो रात टोले का नाम बदलते हुए एक बोर्ड भी खुद ही लगा दिया था उनलोगों ने—आदर्श बनारसी नगर. बड़ी पुरानी बसाहट है वह. वहां हमारे गांव के कोई लोग दिख जाये तो समझिये कि उसका बैताल खाता में नाम चढ़ गया और वह छंटउआ आदमी हो गया. मेरी रुचि रही उनकी दुनिया समझने में. यह जानने में उनके बसाहटों के बीच जो स्कूल है, उसमें पढ़नेवाले बच्चों के पिता का एक ही नाम रुपकुमार क्यों लिखा हुआ है. पत्रकारिता में आने के बाद भी घर का ताप—कोप ऐसा रहा कि छुप छुपा के बिना घर गये, बाहर से आकर, वहीं बनारसीनगर में उतरकर यह समझना पड़ा था और फिर वहीं से वापसी भी कर लिया था. छोटी शाहजहां, बड़ी शाहजहां, संदइया, बबिता, गुलाबो, नाज बेगम, पूनम देवी… न जाने कितने अनारकलियों का नाम बचपन से सुन रखा था. पत्रकारिता में आने के बाद जितने जीवित बची, सबसे मिलने के जुगत में लगा रहा. शायद बचपन से इन अनारकलियों के प्रति दिवानगी की कीमत इतनी चुका चुका था कि उनके प्रति आकर्षण और भी बढ़ गया था कि आखिर क्यों इनका आयोजन देखने भर जाता हूं तो नाम भर से ही कुटम—कुटे—कुटानी होने लगता है मेरा. हमारे इलाके की कई अनारकली नेता बनी. बढ़ियां नेता, चर्चित हुईं लेकिन उनके साथ सो कॉल्ड सभ्य संभ्रांत समाज से आये लोगों ने एक जीप पर बैठकर यात्रा करना भी पसंद नहीं किया कि बदनामी हो जाएगी. एक बार तो एक अनारकली ने मीडिया में कह ही दिया कि जी तो करता है कि छोड़ दूं नेतागिरी, तमाशा है यह, फिर से बन जाउं अनारकली. हिल्ला देनेवाला बयान था अनारकली का लेकिन हिला नहीं था कोई. सबने कहा था— नौटंकीबाज है अनारकलिया, बकैती करती है. बाद में गया और औरंगाबाद की अनारकलियों से खूब मिला. पैरवी कर—कर के अखबार में असाइनमेंट लिया कि अनारकलियों की बस्ती में जाउंगा, सीरिज करूंगा. औरंगाबाद में तो अजीब ही है अनारकलियों की बस्ती. एक घर मिलेगा फलाना अनारकली, सामने वाले घर पर मोटा—मोटा लिखा हुआ मिलेगा— यह अनारकली का घर नहीं है, यहां कोई अनारकली नहीं रहती, यह निजी मकान है, सभ्य लोगों का घर. गया की कहानी अलग है. उसे अगले अनारकली पोस्ट में. फिलहाल तो अपने आरावाली अनारकली का बेसब्री से इंतजार है. आरा की अनारकलियों पर भी एक पोस्ट अलग से, क्योंकि वहां की माटी—पानी ने बेशुमार अनारकलियों को बनाया है लेकिन बढ़ाया नहीं. अनारकली फ्रॉम आरा का बेसब्री से इंतजार की अनेकानेक वजहें हैं. एक तो बहुत साफ है कि Avinash भाई की फिल्म है, उसमें अपने प्रिय Pankaj भाई रंगीला हैं. Ramkumar भाई के गीत हैं. अविनाश भाई जब मुंबई गये तो ऐसे ही एक दिन बातचीत में उन्होंने बिहार—झारखंड की पत्रकारिता का हाल लिया. और फिर गहरी सांस लेते हुए कहा— अब उस दुनिया में वापस नहीं लौटूंगा निरालाजी, यहीं रहूंगा, जितना संघर्ष करना पड़े, करूंगा लेकिन वापसी नहीं करूंगा उस दुनिया में. हम अनारकली को इसलिए भी देखेंगे कि एकरसा राह पर अग्रसर इस दुनिया को बाय करने का साहस जुटे. मन, जो कायर हो गया है, वह थोड़ा मजबूत हो.
निराला बिदेसिया के फेसबुक वाल से https://www.facebook.com/rang.bidesia