सुशील भाई, आपको बच्चे थैंक्यू बोल रहे हैं
निराला
मोतीहारीवाले सुशील कुमार पुराने मित्र हैं. वही सुशील कुमार, कौन बनेगा करोड़पति के विजेता. केबीसी में विनर बनने के बाद सुशील की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि वे बदले नहीं. जरा भी नहीं. स्वभाव से वैसे ही सरोकारी बने रहे, विनम्रता—अनुशासन उसी तरह रहा. एक लिहाज से देखें तो यह कोई मामूली काम नहीं. अचानक आया पैसा बहुत कुछ बदल देता है. सुशील नहीं बदले. वे अपने शहर में, अपने इलाके में लगातार कई काम करते रहे. आत्मप्रचार से दूर अपनी धुन में लगे रहे. इस बार पटना पुस्तक मेले से निकल चुका था. उसी रात गाड़ी थी बाहर जाने के लिए. सुशील कुमार का फोन आया, आप हैं कहां, मैंने आपके एफबी पर ही देखा कि आप मेले में हैं तो चला आया. सुशील को ना नहीं कह सका. वापस मेला लौटा. सुशील ने कहा कि आप आश्रम में बच्चों के लिए कुछ किताबें खरीद ले, बस इसी के लिए बुलाया था. आपको जितना किताब मन हो, जिस—जिस तरह की किताब बच्चों की जरूरत का हो, ले लीजिए. इसी के लिए आपको निकल जाने के बाद भी आग्रह कर के, दबाव बना के मेला में वापस बुलाया. किताबों की दृष्टि से इस बार पटना पुस्तक मेला का रंग चटकदार नहीं था. किताबों का रेंज कम था. हमलोग मेला में घूमे. बच्चों की बहुत खास किताब नहीं मिल सकी, फिर भी जो किताबें मिली, उसमें कुछ लिये. सुशील ने भी अपने लिए ढेरों किताबें ली. वे हर साल मेले में आकर अपने लिए किताब लेते हैं. साल भर का कोटा. सुशील की भी कुछ किताबें जल्दबाजी में मेरे बस्ते में ही आ गयी. पटना पुस्तक मेले से लौटने के बाद अस्पताल का ही चक्कर ऐसा लगा है कि पुस्तक मेले की किताबों को गट्ठर खोल नहीं पाया. कल खोला तो सबसे पहले बच्चों की किताब का ही गट्ठर खुला. शाम को बच्चों को किताब दिखाया. खुशी का ठिकाना नहीं. सुशील भाई, आपको बच्चे थैंक्यू बोल रहे हैं. शानदार बेहतरीन किताबों की शौगात दी है आपने.
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